लालच बुरी बला Lalach buri bala kahani 2025

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लालच बुरी बला: राजू और मोहन की सीख भरी दोस्ती की कहानी

बिहार के एक छोटे से गांव नीमगढ़ में दो लड़के रहते थे – राजू और मोहन। दोनों एक ही उम्र के, एक ही कक्षा में पढ़ने वाले, और बचपन से ही एक दूसरे के सच्चे साथी। दोनों के घरों की हालत ठीक वैसी ही थी, जैसी आम गांव के गरीब किसानों की होती है। मुश्किल से गुजारा। पर उनकी दोस्ती में कोई कमी नहीं थी। एक का दुख दूसरे का दुख, एक का सुख दूसरे का सुख। स्कूल जाना हो, नदी किनारे मछली पकड़ना हो, या फिर किसी के खेत में काम करने जाना हो – दोनों हमेशा साथ-साथ।

एक बार गर्मियों की छुट्टियां थीं। दोपहर की तेज धूप थमने के बाद, दोनों गांव के बाहर स्थित अपने खेत की तरफ निकले। राजू के पिता का खेत था वो, और मोहन अक्सर उनके काम में हाथ बंटाने चला जाता। उस दिन काम था खेत के एक कोने में जमा हुआ कचरा और झाड़ियां साफ करने का। धूप तो कम थी, पर गर्मी का असर अभी भी था। पसीने में नहाए दोनों जी-तोड़ मेहनत कर रहे थे।

अचानक, मोहन के हल का फल किसी कड़ी चीज से टकराया। टन! आवाज हुई। “अरे ये क्या?” मोहन ने झाड़ियां हटाईं। नीचे कुछ दबा हुआ था। दोनों ने मिलकर खोदना शुरू किया। कुछ देर बाद उनकी नजरों के सामने थी एक छोटी सी, लेकिन भारी, जंग खाई हुई धातु की पेटी! पेटी बहुत पुरानी लग रही थी, पर उस पर लगी मोटी ताला अभी भी मजबूत थी।

“राजू! ये क्या मिल गया?” मोहन की आंखें चमक उठीं।

“पता नहीं यार… लेकिन देख तो कितनी भारी है!” राजू ने उसे उठाने की कोशिश की।

उत्सुकता से भरे दोनों ने एक बड़ा पत्थर उठाया और ताला तोड़ने की कोशिश की। कई वार के बाद ताला टूटा। धीरे से पेटी का ढक्कन खोला तो दोनों की सांसें रुक सी गईं। अंदर सोने के पुराने सिक्के थे! बहुत सारे! और कुछ चमकदार रत्न भी दिखे! उस गरीबी में ये देखना ऐसा था जैसे सपना सच हो गया हो।

“अरे भगवान! हम तो अमीर हो गए राजू!” मोहन चिल्लाया, खुशी से उछल पड़ा।

राजू भी हैरान था, पर उसके चेहरे पर खुशी के साथ थोड़ी चिंता भी थी। “हां… पर ये सब किसका है मोहन? और इसे कहां रखेंगे? किसी को पता चला तो…”

“अरे किसी को पता नहीं चलने देंगे!” मोहन बोला, उसकी आंखों में सोने की चमक साफ झलक रही थी। “चलो, इसे फटाफट यहां से ले चलते हैं। पहले मेरे घर चलते हैं, वहां छिपा देते हैं। फिर सोचेंगे क्या करना है।”

राजू को ये ठीक नहीं लगा। उसने कहा, “पर मोहन, ये खेत तो मेरे पिताजी का है। शायद ये उनके बाप-दादा का छुपाया हुआ हो। हमें उन्हें बताना चाहिए।”

मोहन का चेहरा तुरंत बदल गया। “अरे तू पागल है क्या राजू? अगर तेरे पिताजी को पता चला तो सब उनका हो जाएगा! हमें कुछ नहीं मिलेगा! नहीं, किसी को नहीं बताना है। चल, जल्दी कर।” मोहन का स्वार्थ और लालच साफ दिख रहा था।

राजू मन मसोस कर रह गया। उसने सोचा, शायद मोहन ठीक कह रहा है। दोस्त है ना, शेयर कर लेंगे। दोनों ने पेटी को एक बोरे में छिपाया और सावधानी से मोहन के घर की तरफ चल पड़े।

उस रात राजू सो नहीं पाया। उसके मन में अजीब सी बेचैनी थी। अगले दिन सुबह वह मोहन के घर पहुंचा तो देखा मोहन का व्यवहार बिल्कुल बदला हुआ था। वह झिझक रहा था, बातें टाल रहा था।

“अरे राजू, वो पेटी… देखो यार, हमें किसी को पता नहीं चलने देना है। तू किसी से मत बोलना। मैं सोच रहा हूं कि कहीं बहुत सुरक्षित जगह छिपा दूं। तू बाद में आना,” मोहन ने घबराहट से कहा।

राजू को लगा जैसे मोहन उसे दूर करना चाहता है। उसका दिल टूट गया। “पर मोहन, हम तो दोस्त हैं ना? हमने मिलकर निकाला था। हमें बराबर बांटना चाहिए।”

मोहन ने गुस्से से कहा, “बांटना? अरे, तूने तो बस झाड़ियां हटाई थीं! पेटी तो मेरे हल से मिली! और फिर, ये मेरे घर पर है। मैं तय करूंगा कि क्या करना है। तू बस चुप रह।”

राजू स्तब्ध रह गया। ये उसका अपना मोहन कैसे बोल सकता है? जिसके साथ उसने रोटी बांटी थी, आज वही सोने के लिए दोस्ती भूल रहा था। लालच ने मोहन को पूरी तरह घेर लिया था।

कुछ दिनों तक मोहन राजू से बचता रहा। वह पेटी को लेकर बहुत चिंतित और गुपचुप तरीके से रहने लगा। उसने सोचा कि कहीं राजू चुप न रहे और पुलिस या किसी को बता दे। लालच के साथ डर भी उसके दिल में घर कर गया। वह पेटी को रातोंरात गांव के बाहर एक पुराने, सुनसान मंदिर के खंडहर में छिपाने गया। अंधेरा घना था। घबराहट में उसने पेटी को एक टूटी हुई दीवार के पीछे गड्ढा खोदकर दबा दिया। काम पूरा करके वह जल्दी से वापस लौटने लगा।

रास्ते में उसे एक अजीब सी आवाज सुनाई दी। हिस्स्स्स… मोहन का दिल धड़क उठा। उसने टॉर्च की रोशनी घुमाई। एक मोटा, खतरनाक सा नाग उसके रास्ते में बैठा था! डर के मारे मोहन का खून सूख गया। वह पीछे हटा, लेकिन फिसलकर गिर पड़ा। नाग ने झपट्टा मारा और उसके पैर में डंस लिया!https://hindistory.tech/

तीखा दर्द उठा। मोहन चीखा: “बचाओ! कोई है? मदद करो!” लेकिन वहां सुनसान था। दर्द और जहर का असर तेजी से होने लगा। उसे लगा जैसे सब कुछ धुंधला हो रहा है। तब उसे राजू की याद आई। उसका वह सच्चा दोस्त, जिसे उसने सोने के लिए ठुकरा दिया। पछतावे के आंसू उसकी आंखों से बह निकले। “राजू… माफ करना यार…” ये कहते हुए उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया।

सुबह जब मोहन का घरवालों को पता चला कि वह रात भर घर नहीं आया तो हड़कंप मच गया। सब लोग उसे ढूंढने निकले। राजू सबसे आगे था। उसे मोहन के व्यवहार से दुख था, लेकिन दोस्ती का ध्यान आते ही वह भी उसे खोजने दौड़ पड़ा। उसी सुनसान रास्ते पर उन्हें मोहन मिला, बेहोश, पैर सूजा हुआ। पास ही मरे हुए नाग का शव भी था। लगता था मोहन ने मरने से पहले नाग को पत्थर से कुचल दिया था।

मोहन को फौरन अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने जान बचा ली, लेकिन उसका डंसा हुआ पैर बुरी तरह खराब हो चुका था। उसे काटना पड़ा। जब मोहन होश में आया और अपनी हालत देखी, तो उसका दर्द देखते नहीं बनता था। शारीरिक पीड़ा से ज्यादा तीखा था मन का दर्द और पछतावा।

राजू उसके बिस्तर के पास बैठा था। मोहन की आंखों में आंसू थे। उसने राजू का हाथ पकड़ लिया। “राजू… मैं माफी मांगता हूं। मैं बहुत बड़ा मूर्ख था। लालच ने मेरी आंखों पर पट्टी बांध दी थी। मैंने तुझे भुला दिया… दोस्ती को भुला दिया। देख, इसी लालच ने मेरा पैर भी छीन लिया। सोना कहीं का नहीं रहा… और मैं…” वह फूट-फूट कर रोने लगा।

राजू ने उसके आंसू पोंछे। “शांत हो जा मोहन। तू ठीक हो जाएगा। हम फिर से पहले जैसे हो जाएंगे। उस सोने की पेटी का क्या? वो तो वहीं खंडहर में पड़ी है।”

मोहन ने हां में सिर हिलाया। “उससे अब मुझे कुछ नहीं चाहिए राजू। वो सब बुराई की जड़ है। तू जाकर गांव के सरपंच को सब बता दे। वो सही फैसला करेंगे। शायद वो किसी पुराने मंदिर का खजाना हो।”

राजू ने ऐसा ही किया। सरपंच ने पुरातत्व विभाग को सूचना दी। विभाग के लोग आए और उन्होंने पेटी बरामद की। बताया गया कि वो सैकड़ों साल पुरानी थी और ऐतिहासिक महत्व की थी। उन्होंने राजू और मोहन को एक छोटा सा इनाम दिया, उनकी ईमानदारी के लिए।

मोहन का जीवन बदल चुका था। वह अब चल नहीं सकता था, पर उसके मन की अंधेरा छंट चुका था। राजू उसकी हर संभव मदद करता। दोनों की दोस्ती फिर से पहले जैसी हो गई, बल्कि उससे भी गहरी। मोहन ने जिंदगी का सबसे बड़ा सबक सीखा था – लालच बुरी बला है। यह इंसान को अंधा कर देता है। दोस्ती, रिश्ते, इज्जत सब कुछ तहस-नहस कर देता है। कभी-कभी तो जान भी ले लेता है, या फिर जिंदगी भर का दुख दे जाता है। असली खजाना तो अच्छे दिल और सच्चे रिश्तों में होता है।

सोना चमकता है, पर लालच का अंधेरा उस चमक से भी ज्यादा ताकतवर होता है। बचो उससे। क्योंकि लालच का फल हमेशा कड़वा ही होता है।

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